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70 प्रतिशत या अधिक दिव्यांगता पर सेवा विस्तार देने की नीति पर सवाल, हाईकोर्ट ने औचित्य स्पष्ट करे हरियाणा सरकार

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论坛元老

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发表于 2025-10-28 08:35:50 | 显示全部楼层 |阅读模式
  हाईकोर्ट ने कहा कि सरकार का यह फैसला दिव्यांग समुदाय के भीतर भी असमानता पैदा करता है।





राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने 70 प्रतिशत या उससे अधिक दिव्यांगता पर सेवा विस्तार देने की हरियाणा सरकार की नीति पर सवाल उठाए हैं। जस्टिस अश्विनी कुमार मिश्रा और जस्टिस रोहित कपूर की खंडपीठ ने कहा कि आगे की सुनवाई से पहले अदालत यह समझना चाहती है कि केवल 70 प्रतिशत या उससे अधिक दिव्यांगता वाले या नेत्रहीन कर्मचारियों को ही दो वर्ष की अतिरिक्त सेवा अवधि (रिटायरमेंट आयु में वृद्धि) का लाभ का क्या तर्क या औचित्य है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें



दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम 2016 का उद्देश्य केवल दिव्यांग व्यक्तियों की सुरक्षा है, इसलिए राज्य की इस नीति को लेकर स्पष्टीकरण आवश्यक है। हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को इस संबंध में हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है। साथ ही, जब तक सरकार का जवाब नहीं आता तब तक अदालत ने आदेश दिया कि 40 प्रतिशत या उससे अधिक बेंचमार्क दिव्यांगता वाले सभी कर्मचारी 60 वर्ष की आयु तक सेवा में बने रहेंगे। जिन मामलों में पीजीआई रोहतक या पीजीआई चंडीगढ़ की रिपोर्ट के आधार पर दिव्यांगता प्रतिशत पर विवाद है, उन्हें फिलहाल इस लाभ का फायदा नहीं मिलेगा।



यह आदेश उन कई सरकारी कर्मचारियों की याचिकाओं पर दिया गया है, जो 40 प्रतिशत या उससे अधिक की बेंचमार्क दिव्यांगता से पीड़ित हैं। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 के तहत “बेंचमार्क दिव्यांगता” की परिभाषा 40 प्रतिशत या उससे अधिक है। इसलिए राज्य द्वारा सेवा विस्तार का लाभ केवल 70 प्रतिशत या उससे अधिक दिव्यांगता वालों को देना भेदभावपूर्ण है और समानता के अधिकार का उल्लंघन है। वर्तमान में हरियाणा सिविल सेवा (सामान्य) नियम 2016 के अनुसार सामान्य कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति आयु 58 वर्ष है।



कुछ श्रेणियों को अपवाद स्वरूप अधिक आयु सीमा दी गई है, जैसे ग्रुप-डी कर्मचारी और न्यायिक अधिकारी 60 वर्ष में, चिकित्सक 65 वर्ष में और 70 प्रतिशत से अधिक दिव्यांग या नेत्रहीन कर्मचारी 60 वर्ष में सेवानिवृत्त होते हैं। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि 40 प्रतिशत से 69 प्रतिशत दिव्यांगता वाले कर्मचारियों को इस लाभ से वंचित करना अनुचित है और यह दिव्यांग समुदाय के भीतर भी असमानता पैदा करता है, जबकि कानून का उद्देश्य भेदभाव मिटाना और समान अवसर सुनिश्चित करना है।
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