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Bihar Politics: सिद्धांतहीन राजनीति में धन-बल, बाहुबल का दबदबा, घटा नेताओं का सम्मान

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发表于 2025-10-28 18:31:31 | 显示全部楼层 |阅读模式
  
धन-बल ने छीना साधारण का हक: पूर्व विधायक शिवदानी



धर्मेंद्र कुमार, वीरपुर (बेगूसराय)। आज की राजनीति में सिद्धांत गायब है, धन-बल और बाहुबल का बोलबाला है। नेताओं की गिरती भाषाई मर्यादा ने जनता के दिलों में उनके सम्मान को कम कर दिया है।

पहले सिद्धांतों की आलोचना होती थी, अब व्यक्तिगत टिप्पणियों का दौर है। यह कहना है 93 वर्षीय पूर्व विधायक शिवदानी प्रसाद सिंह का। दैनिक जागरण से विशेष बातचीत में उन्होंने खुलासा किया कि कैसे राजनीति का आत्मा बदल चुका है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
1990 का वह दौर और आज की हकीकत

1990-95 तक बरौनी (अब तेघड़ा) विधानसभा से विधायक रहे शिवदानी प्रसाद सिंह ने कांग्रेस नेत्री कमला देवी को हराया था। आज 93 की उम्र में वे राजनीति से दूर, आध्यात्मिक जीवन जी रहे हैं।

वे बताते हैं, पहले जनता विचारधारा और कार्यशैली के आधार पर नेता चुनती थी। छोटी कमेटी टिकट तय करती थी। नेताओं को जनता का विश्वास जीतने के लिए सिद्धांतवादी और मानवतावादी होना पड़ता था। व्यक्तिगत दुश्मनी या ओछी टिप्पणी की कोई जगह नहीं थी।
धन-बल ने छीना साधारण का हक

आज जाति, धन और बाहुबल ने सिद्धांतों को हाशिए पर धकेल दिया है। मर्यादा और शालीनता गायब हो रही है। धन के बेतहाशा उपयोग ने सच्ची जनसेवा को झटका दिया है। नतीजा, गरीब और साधारण लोगों के लिए चुनाव लड़ना अब महज सपना बन गया है।
गौरवमय अतीत, परिवार की राह अलग

जहां आज नेता अपने बच्चों को राजनीति में लाने को बेताब रहते हैं, शिवदानी सिंह का परिवार इससे कोसों दूर है। 1962 में भाकपा से जुड़े, 24 साल बरौनी प्रखंड प्रमुख रहे और विधायक बने।

उनके कार्यकाल में वीरपुर में प्रखंड, अंचल, थाना, बिजली उपकेंद्र और बेगूसराय-वीरपुर सड़क बनी। उनके बड़े पुत्र विरेश कुमार मैसूर में भारतीय भाषा संस्थान से सेवानिवृत्त निदेशक हैं।

छोटे पुत्र मुकेश कुमार राष्ट्रीय बीमा से सेवानिवृत्त हैं और पुत्री प्रीति कुमारी गृहिणी हैं। पौत्र सौरभ साफ्टवेयर इंजीनियर से उद्यमी बने। परिवार के ज्यादातर सदस्य बाहर रहते हैं, पर त्योहारों पर वीरपुर आते हैं।
क्या लौटेगा सिद्धांतों का दौर

शिवदानी प्रसाद सिंह की बातें आज की राजनीति पर करारा प्रहार करती हैं। उनका मानना है कि सच्ची जनसेवा और विचारधारा अब हाशिए पर है। सवाल यह है, कि क्या फिर कभी लौटेगा वह दौर, जब सिद्धांत राजनीति का आत्मा हुआ करता था।
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