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दानापुर विधानसभा चुनाव: विकास की राह पर राजनीति की कसौटी, क्या वापसी कर पाएगी बीजेपी?

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发表于 2025-10-28 18:21:38 | 显示全部楼层 |阅读模式
  



संवाद सहयोगी, दानापुर। दानापुर विधानसभा सीट फिर चुनावी रंग में रंगने को तैयार है। इस बार 3,74,193 मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग कर तय करेंगे कि अगला विधायक कौन होगा। इनमें 1,97,486 पुरुष, 1,76,697 महिलाएं और 10 थर्ड जेंडर मतदाता शामिल हैं। इसके साथ ही 2,488 वरीय नागरिक, 5,697 युवा मतदाता और 2,272 दिव्यांग मतदाता चुनाव में अहम भूमिका निभाएंगे। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

दानापुर विधानसभा क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति विशेष है। यह क्षेत्र शहरी, ग्रामीण और दियारा क्षेत्र में फैला है। 13 पंचायतों और दो नगर निकायों वाले इस क्षेत्र में विकास की तस्वीर मिश्रित है। जहां एक ओर मेट्रो निर्माण और एलीवेटेड रोड जैसी परियोजनाएं चल रही हैं, वहीं जल निकासी की समस्या अब भी गंभीर बनी हुई है।

दियारा की छह पंचायत में 1980 में बुद्धदेव सिंह के विधायक रहने के दौरान बिजली दियारा क्षेत्र में पहुंची पर एक दिन में ही सब समाप्त हो गया। पुन: एनडीए सरकार में दियारा बिजली से जगमग हुआ। वहीं, दियारा लाइफलाइन कहा जाने वाले पीपापुल 1995 में लालू प्रसाद के मुख्यमंत्रित्व काल में बनाया गया, जो आज भी दियारावासियों के लिए लाइफलाइन कहा जाता है।

राजधानी से सटे दानापुर में विकास के कई कार्य हुए पर समस्या आज भी कई हैं। सबसे अधिक जल निकासी की समस्या है। जमीन का दाम करोड़ों में पहुंच गए। इलाके में नेहरूपथ हो या गोलारोड या फिर खगौल रोड इन इलाकों में गगनचुंबी अपार्टमेंट व कालोनी का जाल फैल गया है। खगौल रोड का चौड़ीकरण हुआ।

विकास को दर्शाता निर्माणाधीन मेट्रो, बिहटा खगौल एलीवेटेड रोड का निर्माण तेजी से चल रहा है। कुछ वर्षों में दानापुर का लुक चेंज नजर आएगा। उधर, दियारा में बाढ बड़ी समस्या बनी रहती है। स्वास्थ्य के क्षेत्र में अनुमंडलीय अस्पताल में 100 बेड वाले भवन बने। जरूरत है उसमें समुचित चिकित्सक व व्यवस्था की।

विधानसभा सीट पर हुए अबतक के चुनाव व उप चुनाव में कई दिग्गज जीत चुके हैं। कांग्रेस यहां से पांच बार प्रतिनिधित्व कर चुकी तो भाजपा भी उपचुनाव समेत पांच बार यहां से जीत दर्ज करा चुकी है।

जनता दल व राजद मिलाकर स्वयं लालू प्रसाद समेत अन्य पांच बार जीत चुके हैं। वर्तमान में राजद का इस सीट पर कब्जा है। भाजपा पुन: इस सीट पर कब्जा चाहती है।

1957 में सर्वप्रथम जगत नारायण लाल कांग्रेस के टिकट पर जीत दर्ज किए थे, जिनसे सोशलिस्ट पार्टी के रामसेवक सिंह ने 1962 में सीट छीन लिया था। दो बार रामसेवक सिंह इस सीट पर जमे रहे। 1969 में काग्रेस के टिकट पर बुद्धदेव सिंह मैदान में उतरे और जीत दर्ज की।

लगातार दो बार बुद्धदेव सिंह यहां से जीत दर्ज किए। 1977 में शेरे बिहार कहे जाने वाले रामलखन सिंह यादव कांग्रेस के टिकट पर भाग्य आजमाए और जीत भी मिली। पुन: 1980 में बुद्धदेव सिंह विधायक बने। 1985 में बिजेन्द्र गोप निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में जीते।

1990 में वे जनता दल के टिकट पर जीत दर्ज किए। उस समय उनका मुख्य मुकाबला भाजपा के अभय सिंह से हुआ था। 1995 में राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद दानापुर से भाग्य आजमाए और जीत दर्ज किए। इस सीट को वो छोड़ दिए और 1996 में उप चुनाव हुआ, जिसमें भाजपा प्रत्याशी के रूप में पहली बार विजय सिंह यादव जीते।

2000 में फिर लालू प्रसाद उतरे और यहां के मतदाता ने उनका साथ दिया और वे विजयी हुए पर वे इस सीट को छोड़ दिए। उसके बाद 2002 में उप चुनाव हुआ और राजद के टिकट पर रामानंद यादव उतरे और भाजपा प्रत्याशी सत्यनारायण सिन्हा को पराजित किया।

2005 के फरवरी में हुए चुनाव में भाजपा ने सत्यनारायण सिन्हा की पत्नी आशा सिन्हा को मैदान में उतारा और वो जीत गईं। पुन: 2005 के अक्टूबर में हुए चुनाव में भी भाजपा प्रतयाशी के रूप में आशा सिन्हा ने जीत दर्ज कराईं। 2010 के चुनाव में भाजपा की आशा सिन्हा को जनता ने जीता कर विधानसभा भेजा।

2015 में तीसरी बार आशा सिन्हा ने हैट्रिक लगाते हुए कडे़ मुकाबले में भाजपा प्रत्याशी के रूप में जीत दर्ज कीं। वर्ष 2020 में राजद प्रत्याशी के रूप में रीतलाल राय मैदान में उतरे और भाजपा से इस सीट को छीन लिया।

एक बार भी भाजपा इस सीट पर अपना कब्जा करने को लेकर तैयारी में जुटी है। वहीं, राजद पुन: अपना कब्जा बनाए रखने को लेकर जुटी है। देखना होगा कि 2025 के इस चुनाव में मतदाता किसे चुनकर विधानसभा भेजती है।
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