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Amitabh Bachchan Birthday: ईश्वर को भी पता है अमिताभ की अहमियत, महानायक ने 83 साल में निभाए इतने किरदार

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发表于 2025-10-28 18:20:20 | 显示全部楼层 |阅读模式
  

अमिताभ बच्चन बर्थडे स्पेशल/ फोटो- Instagram



विनोद अनुपम, जागरण न्यूजनेटवर्क। आमतौर पर हिंदुस्तान में लोग 60 की उम्र में काम से अवकाश ले लेते हैं, 83 की उम्र में तो जीवन से अवकाश की बात होने लगती है। ‘अब हमें क्या करना, जो करना था कर चुके, तुम लोग संभालो..’,आम हिंदुस्तानी घरों में बुजुर्गों की जुबान पर इस उम्र में यही जुमले आ जाते हैं। ऐसे में अमिताभ 83 की उम्र में एक दर्जन से अधिक गंभीर सर्जरी के बाद भी कौन बनेगा करोड़पति के सेट पर युवतम उत्साह से दौड़ते हुए प्रवेश करते हैं। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

हिंदी सिनेमा में प्रौढ़ अभिनेताओं की सक्रियता पहले भी थी, अशोक कुमार, नाजिर हुसैन, ओम प्रकाश, अभि भट्टाचार्य, श्री राम लागू, ए के हंगल भी सिनेमा के लिए अनिवार्य रहे हैं, लेकिन उनमें और अमिताभ की भूमिका में गुणात्मक अंतर देखा जा सकता है। जहां वे अधिकांश फिल्मों में प्रौढ़ावस्था की लाचारियों – मजबूरियों को अभिनीत करते रहे, अमिताभ ने झुंड, गुलाबो सिताबो, कल्कि, पीकू, पिंक, सत्याग्रह, बागबान, वक्त, फैमिली, सरकार से लेकर ब्लैक, नि:शब्द और कभी अलविदा न कहना जैसी फिल्मों के साथ यह साबित करने की कोशिश की कि उम्र के साथ जिंदगी कमजोर नहीं पड़ती, अनुभव उसे मजबूत बनाते हैं।
2000 के बाद शुरू हुई बिग बी की असली पारी

आने वाले दिनों में वास्तव में जब अमिताभ का समग्र मूल्यांकन होगा, यह तय करना मुश्किल होगा कि उन्हें एंग्री यंगमैन के रूप में याद रखा जाय या जीवंत प्रौढ़ के रूप में। अमिताभ के यदि समग्र अवदान को भुलाना भी चाहें तो, उस नागरिक के रूप में भुलाना संभव नहीं होगा, जिसने सक्रियता की उम्र बदल दी।

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आश्चर्य नहीं कि अमिताभ की अभिनय यात्रा के तीसरे और शायद सबसे महत्वपूर्ण चरण की शुरुआत वर्ष 2000 बाद 60 की उम्र के बाद शुरू होती है। मोहब्बतें, अक्स, बागबान, देव, ब्लैक, सरकार, निःशब्द, चीनी कम, द लास्ट लीयर, और पीकू, पिंक यदि अमिताभ के करियर में शामिल नहीं हो पातीं तो शायद आज उन्हें भी राजेश खन्ना की तरह भुला दिया जाना आसान होता, लेकिन अमिताभ की अभिनय क्षमता की विशेषता रही कि हर बार वे अपनी पिछली फिल्म से थोड़ा आगे दिखे, थोड़ा बेहतर।

  

वर्ष 2000 में शुरुआत मोहब्बतें से होती है और 2001 में अक्स, कभी खुशी कभी गम में एक नए परिपक्व, जीवन के अनुभवों में तपे तपाए अमिताभ से दर्शकों की मुलाकात होती है। इन दो वर्षों में उन्हें चार फिल्म फेयर अवॉर्ड से सम्मानित किया जाता है। ब्लैक का जिद्दी शिक्षक हो या अल्झाइमर पीड़ित बुजुर्ग, अमिताभ की अभिनय क्षमता विस्मित करती हैं। वास्तव में ‘कल्कि’ के अश्वत्थामा, मोहब्बतें के प्राचार्य नारायण शंकर, देव के डीसीपी देव प्रताप सिंह, सरकार के सुभाष नागरे या फिर पिंक के दीपक सहगल या पीकू के भास्कर, अमिताभ अपने स्टारडम को सुरक्षित रखते हुए उसे नई पहचान देने की कोशिश करते हैं।
इन फिल्मों के लिए मिला था राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार

पीकू में उनकी वाचलता खास होती है तो पिंक में उनका मौन। 2005 में ब्लैक के बाद 2009 में पा के लिए अमिताभ बच्चन को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित करने की घोषणा होती है। जब भी लगता है अब अमिताभ की पारी पूरी हुई, वे अगली पारी के लिए तैयार दिखते हैं। 2016 में अमिताभ फिर राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार के लिए खड़े होते हैं फिल्म पीकू की भूमिका के लिए। ये अमिताभ ही हो सकते हैं जो बेस्ट एक्टर का स्क्रीन अवॉर्ड रणबीर सिंह जैसे ऊर्जावान अभिनेता के साथ शेयर किए जाने की मजबूरी बन सकते हैं।

  

आज भी अमिताभ बच्चन ने 1982 से शुरू की गई प्रत्येक रविवार अपने घर जलसा से बाहर निकल कर दर्शकों के अभिवादन की परंपरा जिस तरह कायम रखी है, वाकई लगता है ईश्वर को भी पता है अमिताभ की अहमियत।

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