找回密码
 立即注册
搜索
查看: 545|回复: 0

Valmiki Ramayan: यहां पढ़ें वाल्मीकि रामायण से जुड़ी प्रमुख बातें, मिलेगी जीवन जीने की नई राह

[复制链接]

8万

主题

-651

回帖

24万

积分

论坛元老

积分
247141
发表于 2025-10-28 18:17:59 | 显示全部楼层 |阅读模式
  Valmiki Ramayana : वाल्मीकि रामायण का महत्व।





डा. राजेश श्रीवास्तव निदेशक, (रामायण केंद्र, भोपाल, मध्यप्रदेश)। वाल्मीकि महर्षि थे और नारद देवर्षि। वाल्मीकि महर्षि बनने की प्रक्रिया में हैं, किंतु उनका साक्षात संपर्क देवर्षि नारद से है। वाल्मीकि रामायण का आरंभ ही नारद और वाल्मीकि के संवाद से है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

  • तपस्वाध्यायनिरतं तपस्वी वाग्विदांवरम।
  • नारदं परिपप्रच्छ वाल्मीकिर्मुनिपुंगवम् ।।


तमसा नदी के तट पर वाल्मीकि ने नारदजी से पूछा - हे, मुने। इस समय संसार में गुणवान, वीर्यवान, धर्मज्ञ, सत्यवक्ता और प्रियदर्शन सुंदर पुरुष कौन है? नारद जी ने उत्तर दिया। इक्ष्वाकु वंश के श्रीराम। वाल्मीकि तपस्वी हैं, परंतु नारद बहुगुणी। वे तपस्या, स्वाध्याय और वाणी मर्मज्ञ हैं। तप जिज्ञासा उत्पन्न करता है, स्वाघ्याय उसका निदान। फिर उसे वाणी मिल जाए तो मौन मुखर हो उठता है। वाल्मीकि के मानस से रामकथा की गंगोत्री का प्रवाह प्रस्फुटन हुआ।


रामायण की रचना

वाल्मीकि श्रीराम के समकालीन थे। उन्होंने रामायण की रचना की और उत्तरकांड के अनुसार सीता परित्याग पर उन्हें आश्रय दिया। वे लव और कुश के शिक्षक हुए और उन्हीं के निर्देशन में कुशीलव की परंपरा (कथाओं की वाचिक परंपरा) और रामायण का गायन आरंभ हुआ। वाल्मीकि ने अपना परिचय इस प्रकार दिया है - प्रचेतसोहं दशमः पुत्रोराघवनंदन। (अध्यात्म रामायण, उत्तरकांड) अर्थात - हे रामचंद्र! मैं प्रचेता का दसवां पुत्र हूं। मनुस्मृति (1/35) में लिखा है कि - प्रचेतसं वशिष्ठं च भृगुं नारदमेव च। अर्थात प्रचेता वशिष्ठ, भृगु व नारदादि के भाई थे। शरीर पर वल्म (दीमक) पड़ने के कारण इन्हें वाल्मीकि कहा गया।


रामायण में राम के दो रूप

रामायण में राम के दो रूप दिखाई देते हैं। एक सत्याग्रही राम और दूसरे शस्त्राग्रही राम। स्वयं कष्ट उठाकर दूसरों का कष्ट ग्रहण करने वाले राम अहिंसक नहीं है। उनका दंडविधान स्पष्ट है। भारतीय देव परंपरा में भी शस्त्रों को रूप का अनिवार्य अंग बताया गया है। शिव का त्रिशूल हो या विष्णु का चक्र। राम का धनुष हो अथवा परशुराम का परशु। उनके शस्त्र उनका शृंगार हैं।



वाल्मीकि भविष्यवेत्ता हैं। उन्होंने रामराज्य के सूत्रों का निर्माण किया और राष्ट्र के सांस्कृतिक उत्कर्ष का बीजारोपण। राम के चरित्र के माध्यम से उन्होंने मानवजीवन के सार्थक लक्ष्यों से अवगत कराया। गोस्वामी तुलसीदास ने वाल्मीकि के कार्य को पूर्णता प्रदान की। रामकथा हमारे जीवन की मंत्रकथा है। मंत्रो विजयमूलं हि राज्ञांभवति राघव (रामायण 2/100/16)
राजाओं की विजय का मूल कारण

श्रेष्ठ मंत्रणा ही राजाओं की विजय का मूल कारण है। वाल्मीकिगिरि संभूता रामसागर गामिनी। पुनाति भुवन पुण्या रामायण महानदी।। इदं पवित्रं पापध्नं पुण्यं वैदेश्च सम्मितम्। आयुष्यं पुष्टिजननम सर्वश्रुति मनोहरम। महर्षि वाल्मीकि ने स्वयं घोषित किया कि वेद सम्मत यह रामायण पवित्र, पापहर तथा पुण्यप्रद है। सर्वश्रुति मनोहर यह काव्य धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष प्रदान करने वाला तथा आयु और पुष्टि करने वाला है।



राम की कथा अयोध्या के राजा की कथा नहीं है, अयोध्या से निकलकर राम बनने की कथा है। उनके हाथों में दान, पैरों में तीर्थयात्रा, भुजाओं में विजयश्री, वचन में सत्यता, प्रसाद में लक्ष्मी, संघर्ष में शत्रु की पराजय है। वे दो बार नहीं बोलते। राम द्विनाभि भाषते। राम की यात्रा अपनी नहीं, धर्म की जययात्रा है।

यह भी पढ़ें: Jeevan Darshan: जीवन में रहना चाहते हैं सुखी और प्रसन्न, तो इन बातों का जरूर रखें ध्यान



यह भी पढ़ें: सीता-हरण से लेकर रावण वध तक, यहां पढ़ें संपूर्ण कथा
您需要登录后才可以回帖 登录 | 立即注册

本版积分规则

Archiver|手机版|小黑屋|usdt交易

GMT+8, 2025-11-26 00:40 , Processed in 0.190867 second(s), 24 queries .

Powered by usdt cosino! X3.5

© 2001-2025 Bitcoin Casino

快速回复 返回顶部 返回列表