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दीपावली पर छाया मेड इन चुनार मूर्त‍ियों का जादू, लाखों घरों में होती है इन मूर्तियों की पूजा

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发表于 2025-10-28 18:16:42 | 显示全部楼层 |阅读模式
  यह स्वदेशी उद्योग लगभग सात हजार लोगों की आजीविका का साधन है।





जागरण संवाददाता, चुनार (मीरजापुर)। दीपावली का पर्व आते ही घर-घर में मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा होती है, और उत्तर प्रदेश के चार दर्जन से अधिक जनपदों समेत बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश में लाखों परिवार ‘मेड इन चुनार’ प्रतिमाओं की आराधना कर रहे होते हैं। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

चुनार का यह कुटीर उद्योग आज स्वदेशी कला और पारंपरिक हुनर का जीवंत उदाहरण बन चुका है। कभी चीनी मिट्टी के बर्तनों के लिए प्रसिद्ध चुनार नगरी न केवल स्थानीय बल्कि पूरे पूर्वांचल और समीपवर्ती राज्यों में अपनी स्वदेशी मूर्तियों के लिए पहचान बना चुकी है।



करीब 46 वर्ष पूर्व मध्य प्रदेश से चुनार आए स्व. अर्जुन यादव ने पहली बार प्लास्टर ऑफ पेरिस से लक्ष्मी-गणेश की प्रतिमा बनाई थी। उस समय शायद किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी कि यह प्रयास आने वाले वर्षों में एक विशाल स्वदेशी कुटीर उद्योग का रूप ले लेगा। आज स्टेशन रोड, उस्मानपुर, टेकौर, भरपुर, पीरवाजी शहीद समेत अन्य मोहल्लों में 500 से अधिक छोटे-बड़े कारखाने सक्रिय हैं, जो सालाना 30 से 40 करोड़ रुपये का कारोबार करते हैं।



दीपावली से लगभग दो महीने पहले ही नगर का थोक बाजार उत्सव के रंग में रंगने लगता है। फिलहाल स्टेशन रोड चुनार पर सजा तीन सौ से अधिक दुकानों का बाजार हजारों डिजाइनों और आकारों की लक्ष्मी-गणेश प्रतिमाओं से भरा होता है।

हर डिजाइन और हर दाम में उपलब्ध है चुनार की पीओपी प्रतिमाएं  

चुनार की स्वदेशी मूर्तियां महज पांच रुपये की छोटी प्रतिमा से लेकर ढाई सौ रुपये तक की आकर्षक प्रतिमाओं में उपलब्ध हैं। चुनार की यह स्वदेशी कारीगरी केवल स्थानीय स्तर पर सीमित नहीं रही। यहां बनाई गई प्रतिमाएं उत्तर प्रदेश के लखनऊ, प्रयागराज, कानपुर, रायबरेली, उन्नाव और पड़ोसी बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश तक बड़े पैमाने पर पहुंचती हैं।



कच्चे माल, पेंट और श्रम की लागत में वृद्धि के बावजूद यह स्वदेशी मूर्तियां ग्राहकों को सुलभ दाम में आकर्षक रूप में उपलब्ध होती हैं। यही वजह है कि हर वर्ष व्यवसाय का दायरा और बढ़ रहा है। इस दीपावली भी अनुमान है कि इस उद्योग का कारोबार 30 करोड़ रुपये से अधिक होगा। चुनार के स्थानीय कारीगरों की स्वदेशी प्रतिभा हर दीपावली देशभर में घर-घर में रोशनी और आस्था के साथ चमकती रहती है, और यह कुटीर उद्योग न केवल आर्थिक रूप से बल्कि सांस्कृतिक दृष्टि से भी चुनार की पहचान बन गया है।



सात हजार लोगों की आजीविका का साधन है पीओपी उद्योग  

इस कुटीर उद्योग से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से लगभग सात हजार लोग जुड़े हैं। व्यापारी कृष्णा यादव, राजेश कुमार यादव, लक्ष्मी कांत गुप्ता और अवधेश कुमार वर्मा का कहना है कि हर वर्ष लक्ष्मी-गणेश की स्वदेशी प्रतिमाओं की मांग बढ़ रही है और इस बार भी बाजार से पूरी उम्मीद है। पितृपक्ष के बाद नवरात्र तक तेजी रहती है और दीपावली के एक सप्ताह पूर्व तक अधिकांश व्यापारी माल बेचकर तैयार हो जाते हैं।
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