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Bihar Election 2025: कोसी में NDA का पलड़ा भारी, बदलते समीकरण और दलों की खींचतान बड़ी चुनौती

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发表于 2025-10-28 18:14:26 | 显示全部楼层 |阅读模式
  कोसी में बदलते समीकरण और दलों की खींचतान NDA के लिए चुनौती





माधबेन्द्र, भागलपुर। कोसी की राजनीति गठबंधन का गणित और जातीय समीकरण प्रभावी रहे हैं। प्रमंडल के तीन जिलों सहरसा, सुपौल और मधेपुरा में कुल 13 विधानसभा सीटें हैं और यहां यादव, पचपनिया, दलित-पिछड़े और अल्पसंख्यक आदि की गोलबंदी सत्ता का रुख तय करती है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

कभी लालू-राबड़ी राज में इस इलाके को राजद का गढ़ माना जाता था तो आगे चलकर शरद-नीतीश की जोड़ी ने इसे जदयू का किला बना दिया। 2015 में महागठबंधन बना तो राजद-जदयू साथ आए, तब भी जदयू ने अपनी पकड़ बरकरार रखी।



2020 में नीतीश-भाजपा गठजोड़ और वीआइपी की मौजूदगी से एनडीए का पलड़ा भारी रहा। सुपौल की सभी पांच, सहरसा की चार में से तीन और मधेपुरा की दो सीटें एनडीए के खाते में आईं।

राजद को महज तीन सीटों पर संतोष करना पड़ा। अब 2025 में बदलते समीकरण के बीच यहां की राजनीति दिलचस्प मोड़ पर आ गई है।
सहरसा में चार सीटों पर दिलचस्प जंग

सहरसा जिले की चार सीटों महिषी, सोनवर्षा (सुरक्षित), सहरसा और सिमरीबख्तियारपुर पर इस बार का चुनावी संग्राम दिलचस्प हो गया है। सहरसा सीट पर भाजपा के आलोक रंजन ने 2020 में लवली आनंद को हराया था।



अब लवली जदयू की सांसद हैं और तीसरे स्थान पर रहे किशोर मुन्ना जन सुराज में जा चुके हैं। भाजपा में टिकट को लेकर अंदरखाने खींचतान है, जबकि राजद उम्मीदवार खोजने में ही जुटा है।

सिमरीबख्तियारपुर सीट फिलहाल राजद के युसूफ सलाउद्दीन के पास है। उन्होंने 2020 में वीआइपी सुप्रीमो मुकेश सहनी को डेढ़ हजार वोट से हराया था। अब मुकेश सहनी महागठबंधन के साथ हैं और एनडीए में इस सीट को लेकर घमासान है।



जदयू, लोजपा, हम और भाजपा चारों दल यहां अपने-अपने उम्मीदवार आगे बढ़ा रहे हैं। महिषी सीट पर जदयू के गुंजेश्वर साह की नैया पिछली बार लोजपा उम्मीदवार अब्दुल रज्जाक ने हिलाई थी।

इस बार भी उनकी मौजूदगी मुकाबले को तिकोनिया बना सकती है। सोनवर्षा (सुरक्षित) पर मंत्री रत्नेश सादा मजबूत हैं, लेकिन यहां पासवान वोट का झुकाव समीकरण पलट सकता है।
मधेपुरा में यादव बनाम पचपनिया का संग्राम

मधेपुरा की सियासत हमेशा मंडल बनाम कमंडल और यादव बनाम पचपनिया समीकरण के इर्द-गिर्द घूमती रही है। सदर सीट से राजद के प्रो. चंद्रशेखर लगातार तीन बार विजयी रहे, लेकिन इस बार एंटी-इनकंबेंसी और आंतरिक गुटबाजी उनकी राह कठिन बना रही है।



जिलाध्यक्ष जयकांत यादव व ई. प्रणव प्रकाश जैसे दावेदार सक्रिय हैं। सिंहेश्वर (सुरक्षित) सीट पर राजद विधायक चंद्रहास चौपाल को पार्टी के भीतर ही विरोध झेलना पड़ रहा है, जबकि जदयू से रमेश ऋषिदेव लगभग तय माने जा रहे हैं। बिहारीगंज में जदयू के निरंजन मेहता मजबूत दावेदार हैं।

वहीं कांग्रेस-राजद की खींचतान और रेणु कुशवाहा की एंट्री ने समीकरण उलझा दिए हैं। आलमनगर सीट पर विधानसभा उपाध्यक्ष नरेंद्र नारायण यादव की उम्मीदवारी स्पष्ट है, जबकि विपक्षी गठबंधन यहां भी अंतर्कलह में उलझा है।



कुल मिलाकर, मधेपुरा में यादव वोट बैंक निर्णायक रहेगा, मगर जदयू की पचपनिया राजनीति और एनडीए की एकजुटता राजद के लिए बड़ी चुनौती बन सकती है।
सुपौल में मजबूत है एनडीए का किला, विपक्ष लगा सकता है सेंध

सुपौल जिले की पांचों सीटें निर्मली, सुपौल, पिपरा, त्रिवेणीगंज और छातापुर पर फिलहाल एनडीए के कब्जे में हैं। 2010 में सभी पांचों सीटें जदयू ने जीती थीं। 2015 में जदयू-राजद गठबंधन के दौरान सुपौल, निर्मली और त्रिवेणीगंज जदयू को मिलीं, जबकि पिपरा और छातापुर से राजद मैदान में था।



कांग्रेस को सुपौल सीट मिली थी। उस चुनाव में भाजपा को केवल छातापुर की सीट मिली। 2020 आते-आते सभी पांच सीटें एनडीए के खाते में चली गईं। अबकी बार सीट शेयरिंग को लेकर एनडीए में चार-एक का फार्मूला कायम रहने की संभावना है।

वहीं, महागठबंधन में राजद चार और कांग्रेस एक सीट की दावेदारी कर रही है। वीआइपी भी इस बार गठबंधन में हिस्सेदारी चाह रही है। यानी महागठबंधन में बंटवारे पर अभी सस्पेंस बरकरार है। राजनीतिक समीकरण बदलने से महागठबंधन यहां सेंध लगा सकता है।


गठबंधनों की रणनीति और कमजोर कड़ियां

कोसी में एनडीए को सत्ता और सीटिंग विधायकों के नेटवर्क का लाभ मिल सकता है। भाजपा और जदयू दोनों का यहां मजबूत संगठन है और लोजपा एवं हम जैसे सहयोगी दल भी तालमेल में हैं।

हालांकि टिकट बंटवारे में गुटबाजी परेशानी पैदा कर सकता है। अभी हाल ही में मधेपुरा के आलमनगर में लोजपा (रा) के प्रदेश सचिव चंदन सिंह ने बदलाव रैली निकाली, जबकि यहां सहयोगी दल जदयू के नरेंद्र नारायण यादव विधायक हैं।



महागठबंधन की स्थिति भी उलझी हुई है। राजद के अंदर गुटबाजी है, कांग्रेस कमजोर है और वीआइपी की एंट्री ने समीकरण और पेचीदा बना दिए हैं। कई सीटों पर स्थानीय कार्यकर्ताओं और बाहरी नेताओं के बीच ठनी हुई है।

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