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बिहार चुनाव जोर पकड़ रहा घुसपैठ बनाम वोट चोरी का नैरेटिव, किसमें कितना है दम?

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发表于 2025-10-28 18:13:42 | 显示全部楼层 |阅读模式
  घुसपैठ बनाम वोट चोरी बनाया जा रहा बिहार चुनाव का नया नैरेटिव





सुनील राज, पटना। बिहार विधानसभा चुनाव की तारीखें नजदीक आ रही हैं। इसके साथ ही प्रदेश के राजनीतिक दल अपने उम्मीदवारों, पार्टी की रणनीति के साथ चुनावी मुद्दों को तेजी से आगे बढ़ाने में जुट गए हैं।

चुनावी माहौल तेजी से बदल रहा है। एनडीए और महागठबंधन के दो प्रमुख दल एक ओर भाजपा और दूसरी ओर कांग्रेस अलग-अलग मुद्दों को अपना चुनावी नैरेटिव बनाने में जुट गए हैं।

भाजपा अपनी पार्टी के बड़े नेताओं के हवाले बिहार में घुसपैठ को बड़ा खतरा बता आक्रामक है, तो दूसरी ओर कांग्रेस वोट चोरी के मुद्दे को उठाकर समर्थन हासिल करने में जुटी है।



भाजपा की चुनावी रणनीति बिल्कुल स्पष्ट है। भाजपा देख रही है कि बिहार के तत्काल बाद अगले वर्ष बंगाल में चुनाव होना है। बंगाल में घुसपैठ उसके लिए तुरुप का पत्ता होगा।
सीमांचल में छा रहा घुसपैठ का मुद्दा

इधर बिहार के भी सीमांचल इलाके में घुसपैठ का मसला जोर पकड़ता रहा है। भाजपा का स्वयं दावा है कि सीमावर्ती जिलों में घुसपैठ का खतरा न सिर्फ सुरक्षा के लिए बल्कि रोजगार और संसाधनों के लिए भी चुनौती है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें



भाजपा का घुसपैठ मुद्दा खासकर सीमावर्ती मुस्लिम बहुल इलाकों को टारगेट करता है, जिससे पार्टी का कोर वोट बैंक ऊपरी जातियां और शहरी वोटर एकजुट हो सकें, साथ ही ओबीसी व अति पिछड़े वर्गों में यह संदेश देने के प्रयास भी कि घुसपैठिए उनके रोजगार और जमीन पर कब्जा कर रहे हैं।
कांग्रेस लगातार उठा रही वोट चोरी का मुद्दा

वहीं दूसरी ओर कांग्रेस के दिग्गज नेताओं के साथ ही प्रदेश नेतृत्व तक वोट चोरी का मुद्दा उठाकर भाजपा पर आरोप लगा रहा है कि भाजपा चुनावी प्रक्रिया को प्रभावित करके सत्ता में बने रहना चाहती है।



राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा जैसे नेता लगातार वोट चोरी के खिलाफ मुखर हो कर इसे लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा खतरा बता रहे हैं। राहुल-प्रियंका के साथ ही कांग्रेस के अन्य दिग्गज भी उन्हीं के नक्शे-कदम पर हैं।

कांग्रेस का वोट चोरी नैरेटिव दलित, महादलित और अल्पसंख्यक वोटरों को आकर्षित करने की कोशिश है, जिन्हें लगता है कि अगर चुनाव निष्पक्ष नहीं होंगे तो उनकी राजनीतिक हिस्सेदारी हमेशा कमजोर होगी।


किसमें कितना दम?

राजनीति के जानकारों का मत है कि भाजपा का मुद्दा शहरी और राष्ट्रवादी वोटरों में असरदार होगा। वहीं कांग्रेस का मुद्दा दलित, अल्पसंख्यक और गरीब वर्ग में गूंज पैदा कर सकता है।

असली तस्वीर तब बनेगी, जब यह दोनों मुद्दे बेरोजगारी, महंगाई और शिक्षा जैसे पारंपरिक सवालों से टकराएंगे। बहरहाल चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहे हैं बिहार की राजनीति में सत्ता तक पहुंचने की लड़ाई तेज हो रही है। कौन सा दल अपने मुद्दे को साध सत्ता तक पहुंचेगा यह समय तय करेगा।



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