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सारण में विधानसभा चुनाव में दावेदारों की लम्बी कतार, हर सीट पर सियासी घमासान, नए उम्मीदवार भी मैदान में

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发表于 2025-10-28 18:12:51 | 显示全部楼层 |阅读模式
  विधानसभा चुनाव में दावेदारों की लम्बी कतार





राजीव रंजन, छपरा(सारण)। बिहार विधानसभा चुनाव भले ही अभी औपचारिक रूप से घोषित नहीं हुए हों, लेकिन राजनीतिक तापमान तेजी से बढ़ चुका है। विशेषकर राजनीति की उर्वरा भूमि माने जाने वाले सारण प्रमंडल में चुनावी माहौल पूरी तरह से गर्म हो गया है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

तीन जिलों सारण, सिवान और गोपालगंज के कुल 24 विधानसभा सीटों पर दावेदारों की फौज खड़ी हो चुकी है। दिलचस्प यह है कि किस गठबंधन का कौन-सा दल किस सीट पर उम्मीदवार उतारेगा, इसका ऐलान अभी तक नहीं हुआ है। बावजूद इसके लगभग हर विधानसभा क्षेत्र में सभी दलों के एक से अधिक दावेदार जनता के दरवाजे खटखटाने में जुट गए हैं।



हर संभावित उम्मीदवार का यही दावा है कि उनकी टिकट पक्की है और वे ही गठबंधन का असली चेहरा होंगे। नतीजा यह है कि चाय की दुकानों से लेकर पान गुमटी तक हर जगह यही चर्चा है कि इस बार किसका सिक्का चलेगा और किसकी दावेदारी हवा में उड़ जाएगी।
सियासी पृष्ठभूमि और ऐतिहासिक महत्व

सारण प्रमंडल 1981 में अस्तित्व में आया। इससे पहले यह तिरहुत प्रमंडल का हिस्सा था। सारण, सिवान और गोपालगंज तीन जिलों को मिलाकर यह प्रमंडल बना जिसका मुख्यालय छपरा है। यह क्षेत्र यूपी के बलिया, देवरिया व कुशनीनगर जिला से सटा हुआ है। राजनीतिक दृष्टि से यह इलाका हमेशा समृद्ध रहा है।



आजादी के पहले से यहां राजनीति की गहरी पकड़ रही है। 1937 में जब बिहार विधानसभा का गठन हुआ, उस वक्त सारण से नौ विधायक चुने गए थे। इनमें से डा. सैयद महमूद शिक्षा मंत्री और जगलाल चौधरी स्वास्थ्य मंत्री बने। आजादी के बाद के पहले विधानसभा चुनाव (1951-52) में सारण जिले की 28 सीटों में से 27 पर कांग्रेस का कब्जा था। समय बीता, कांग्रेस का दबदबा टूटा और जेपी आंदोलन के बाद राजनीति का चेहरा बदल गया। इसी क्षेत्र ने बिहार को चार मुख्यमंत्री भी दिए—अब्दुल गफूर, दारोगा प्रसाद राय, लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी।


वर्तमान समीकरण : हर सीट पर बढ़ी हलचल

2020 के विधानसभा चुनाव में सारण प्रमंडल की 24 सीटों में से राजद 11 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी रही। भाजपा को सात, भाकपा माले को दो, जदयू को दो, कांग्रेस और सीपीआई एम को एक-एक सीट मिली। जबकि 2015 में राजद के पास 9, जदयू के पास 7 और भाजपा के पास केवल 5 सीटें थीं। इसका मतलब साफ है कि भाजपा ने मजबूती पाई, जदयू कमजोर हुई और राजद ने अपना दबदबा बनाए रखा।



अबकी बार तस्वीर और भी रोचक हो गई है। महागठबंधन हो, एनडीए या फिर जनसुराज पार्टी जैसी नई ताकतें—हर दल में हर सीट पर कई-कई दावेदार सक्रिय हैं। पिछली बार हार चुके कई चेहरे भी इस बार फिर किस्मत आजमाने के लिए जोर लगा रहे हैं। वहीं नए चेहरे भी सोशल मीडिया पर सक्रियता और जातिगत समीकरणों की गणना कर अपनी पकड़ मजबूत करने में जुटे हैं।
सारण के दस सीटों पर उलट-फेर संभव

सारण के दस सीटों में छह एकमा, बनियापुर, मढ़ौरा, गड़खा, परसा और सोनपुर पर राजद का कब्जा है। बनियापुर के राजद विधायक केदारनाथ सिंह अब वैचारिक रूप से जदयू के हो गये हैं। यहां राजद का नया चेहरा होना या फिर गठबंधन के दूसरे दल के जिम्मे सीट जाना तय है। राजद की सीटिग सीट वाली अन्य पांच सीटों सहित हारी हुई तीन सीटों पर भी पार्टी के नये चेहरों और गठबंधन दलों के सियासी खलीफों की दावेदारी है।



महागठबंधन के सीपीआई एम की एक की सीटिंग सीट मांझी पर भी राजद सहित उसके अन्य दलों के दावेदारों की निगाह लगी है। छपरा, अमनौर और तरैया सीट पर भाजपा के विधायक हैं, पर इन तीनों सीटों पर भाजपा सहित एनडीए गठबंधन के अन्य दावेदार जोर लगाये हुए हैं। जदयू के पास फिलहाल सारण जिले में एक भी सीट नहीं है, पर इस दल के भी एक से अधिक दावेदार सभी दस सीटों पर हैं।
सिवान और गोपालगंज में सियासी हलचल

सिवान के आठ और गोपालगंज के छह विधानसभा सीटों पर चुनाव को लेकर सियासी हलचल है। सिवान जिले के आठ में तीन सिवान, रघुनाथपुर और बड़हरिया सीट पर राजद का कब्जा है। वहीं दो सीट जीरादेई और दरौली में भाकपा माले तथा महाराजगंज में कांग्रेस के विधायक हैं। दो सीट दरौंदा और गोरेयाकोठी भाजपा के कब्जे में हैं।



वहीं गोपालगंज जिले के दो सीट बैकुंठपुर और हथुआ राजद, भोरे और कुचाकोट जैसे दो सीट जदयू, और दो सीट बरौली और गोपालगंज पर भाजपा का कब्जा है। दोनों जिले के इन सीटों पर भी दावेदारों की लंबी कतार है। दलों के पराजित सीट की बात कौन कहें, सीटिंग विधायको के खिलाफ उन्हीं के दल और गठबंधन के कई दावेदार ताल ठोक रहे हैं।
सीट बंटवारे पर घमासान

गठबंधन दलों में सीट बंटवारे पर अभी से खींचतान मच चुकी है। राजद और कांग्रेस में अंदर ही अंदर मनमुटाव चल रहा है। एनडीए में भाजपा अपनी बढ़त बनाए रखने की कोशिश कर रही है, जबकि जदयू अपनी खोई जमीन वापस पाना चाहती है। जनसुराज पार्टी और अन्य छोटे दल तीसरा कोण बनाकर समीकरण बिगाड़ने की रणनीति में हैं।


जनता की राय और चुनावी मुद्दे

जहां दावेदार जातीय समीकरण और राजनीतिक गठबंधन की जोड़-तोड़ में लगे हैं, वहीं जनता अपने मुद्दों पर सरकार चुनने की तैयारी में है। छपरा के मारुति करुणाकर कहते हैं कि सरकार पारदर्शी होनी चाहिए और जाति-धर्म से ऊपर उठकर विकास पर ध्यान दे। सिवान के किसान अरविंद कुमार की प्राथमिकता खाद-बीज, सिंचाई और फसल के सही दाम हैं।

गोपालगंज के महेश साह रोजगार और छोटे कामधंधों के लिए सस्ता कर्ज चाहते हैं, वहीं वीरेन्द्र बैठा (अनुसूचित जाति) का मानना है कि योजनाओं का लाभ सीधे वंचितों तक पहुंचे। मेंहदी हसन (अल्पसंख्यक वर्ग) शिक्षा और सुरक्षा पर जोर देते हैं। छपरा की रीता देवी, जिनके घर के पुरुष रोज़गार के लिए बाहर काम करते हैं, कहती हैं कि हमें ऐसी सरकार चाहिए जो बिहार में ही रोजगार दे, ताकि परिवार बिखरे नहीं और महिलाएं आत्मनिर्भर बन सकें।


पिछले दो चुनावों का गणित

2020 के चुनाव में 24 सीटों में से 11 पर राजद का कब्जा रहा, जबकि भाजपा ने 7, जदयू ने 2, भाकपा माले ने 2, कांग्रेस ने 1 और सीपीआई एम ने 1 सीट जीती। 2015 से तुलना करें तो भाजपा ने दो सीटें बढ़ाईं, भाकपा माले ने भी एक सीट का इजाफा किया, जबकि जदयू सात से घटकर दो पर सिमट गई और कांग्रेस को भी एक सीट का नुकसान हुआ। राजद आज भी इस क्षेत्र की सबसे बड़ी ताकत है, लेकिन भाजपा और वामपंथी दल भी अपनी पकड़ मजबूत कर रहे हैं। वहीं जदयू की गिरावट चर्चा का बड़ा विषय है।


कुल 24 विधानसभा सीटों में पिछले दो चुनावों में मिले सीट
पार्टीचुनाव 2015चुनाव 2020
राजद0911
भाजपा0507
जदयू0702
भाकपा माले0102
कांग्रेस0201
सीपीआई एम00 01
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