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सुहागिन महिलाओं के लिए सौभाग्य लाता है Sindoor Khela, जानें कब और कैसे हुई इसकी शुरुआत

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发表于 2025-10-28 18:11:31 | 显示全部楼层 |阅读模式
  सिंदूर खेला बंगाल की दुर्गा पूजा में विवाहित महिलाओं की खास परम्परा (Picture Credit- AI generated)





लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। नवरात्र का त्योहार हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। इस दौरान मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की नौ दिनों तक पूजा-अर्चना की जाती है। 22 सितंबर से शुरू हुआ यह पर्व दशमी पर दुर्गा विसर्जन के साथ खत्म होता है। देशभर में इस पर्व की धूम देखने को मिलती है और लोग नवदुर्गा-दशहरे के पर्व को अलग-अलग तरीकों से मनाते हैं, लेकिन बंगाल में इसकी अलग ही रौनक देखने को मिलती है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें



यहां नवरात्र का पर्व दुर्गा पूजा के रूप में मनाया जाता है, जिसकी शुरुआत षष्ठी यानी नवरात्र के छठवें दिन से होती है और विजयादशमी के साथ इस पर्व का समापन किया जाता है। यहां दशहरे को विजयादशमी के रूप में मनाते हैं और इस दौरान सिंदूर खेला का आयोजन किया जाता है। यह बंगाल और यहां की संस्कृति से जुड़ी एक महत्वपूर्ण परंपरा है, जो अपने आप में बेहद खास है। ऐसे में आज इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे सिंदूर खेला का इतिहास और क्यों खास है रस्म-


क्या है सिंदूर खेला?

जैसाकि नाम से पता चलता है, सिंदूर खेला की रस्म में बंगाली समुदाय की महिलाएं मां दुर्गा को सिंदूर चढ़ाती हैं। साथ ही पंडाल में मौजूद लोग एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर दुर्गा पूजा और विजयादशमी की शुभकामनाएं देते हैं। आसान भाषा में समझें, तो इस दौरान सिंदूर से होली खेली जाती है और धूमधाम से दुर्गा पूजा का समापन किया जाता है।


क्यों मनाई जाती है यह रस्म

बंगाल में ऐसा माना जाता है कि नवरात्र के दौरान माता पानी नौ दिनों के लिए अपने मायके आती हैं। इसी इसी उपलक्ष्य में बड़े-बड़े पंडालों में मां दुर्गा की मूर्ति स्थापित की जाती है। षष्ठी से शुरू होने वाली दुर्गा पूजा के दौरान मां दुर्गा की पूजा-अर्चना की जाती है और अंत में विजयादशमी के मौके पर सिंदूर खेला यानी सिंदूर की होली खेलकर बेटी स्वरूप मां दुर्गा को विदा किया जाता है यानी कि मां दुर्गा की विदाई के मौके पर यह रस्म मनाई जाती है।



  
सिंदूर खेला का इतिहास

सिंदूर खेला और इसे मनाने की वजह के बारे में जानने के बाद, अब बारी आती है इसका इतिहास जानने की। अगर बात करें इसके इतिहास की, तो सिंदूर खेला का इतिहात करीब 450 साल पुराना है। माना जाता है कि जमींदारों की दुर्गा पूजा के दौरान इस रस्म की शुरुआत हुई थी। मान्यता के मुताबिक इस रस्म में हिस्सा लेने से महिला विधवा होने से बच जाती है।


कौन लेता सिंदूर खेला में हिस्सा

यह रस्म मुख्य रूप से बंगाली हिंदू महिलाओं द्वारा मनाया जाता है। परंपरा के मुताबिक विवाहित महिलाएं इस पर्व में हिस्सा लेती हैं और पूरे रीति-रिवाज के साथ इस रस्म को पूरा करती हैं। ऐसा माना जाता है कि यह रस्म विवाहित महिलाओं के लिए सौभाग्य लाती है और उनके पति की उम्र लंबी होती है। यही वजह है कि सिंदूर खेला शादीशुदा महिलाओं के लिए बेहद खास होता है और इसलिए वह साल भर इसका इंतजार करती हैं।



  

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