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Bihar Politics : बहुजन समीकरण पर बसपा की नजर, राजनीति में पकड़ बनाना प्राथमिकता

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发表于 2025-10-28 18:09:57 | 显示全部楼层 |阅读模式
  चुनाव में बहुजन समीकरण पर बसपा की नजर





सुनील राज, पटना। बिहार में चुनाव लोकसभा के हो या फिर विधानसभा के जातिगत समीकरण हमेशा निर्णायक भूमिका निभाते रहे हैं। दलित, अति पिछड़ा और पिछड़ा वर्ग के साथ-साथ अति पिछड़ा, और अल्पसंख्यक मतदाता यहां हार-जीत की कहानी गढ़ते हैं। यही वह आधार है, जिस पर बहुजन समाज पार्टी (बसपा) बिहार की राजनीति में अपनी पकड़ मजबूत करने की रणनीति बना रही है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

पिछले दिनों बसपा प्रमुख मायावती ने स्वयं यह खुलासा किया कि उनकी पार्टी बसपा बिहार की सभी विधानसभा सीटों पर स्वतंत्र रूप से अपने उम्मीदवार खड़े करेगी। इतना ही नहीं बिहार में लगातार चुनावी राजनीति में पराजित रहने वाली बसपा ने इस चुनाव बड़ी घोषणा की है कि पार्टी सर्वाधिक टिकटें दलित, अति पिछड़ा और पिछड़ा और अल्पसंख्यक वर्ग के प्रत्याशियों को देगी।



इस निर्णय के पीछे उसकी सोची-समझी रणनीति है। उसका मानना है इन वर्गों को एकजुट कर लिया जाए तो चुनावी राजनीति में बिहार जैसे प्रदेश में बढ़त बनाई जा सकती है। मायावती का अनुभव उत्तर प्रदेश में इसी समीकरण को साधने का रहा है और अब वही फार्मूला बिहार की धरती पर आजमाने की तैयारी है।



राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि बिहार की मौजूदा राजनीति एनडीए और महागठबंधन के बीच बंटी हुई है, लेकिन बहुजन राजनीति में घुसपैठ की संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता है। कांग्रेस, राजद और जदयू जैसी पार्टियां भले ही सामाजिक न्याय की राजनीति का दावा करती हों, परंतु इन वर्गो को संपूर्ण प्रतिनिधित्व नहीं दे पाई है। ऐसे में बसपा इस खाली जगह को भरने की कोशिश कर रही है।Patna City news,Bihar election candidates,election expenditure account,election commission guidelines,transparency in elections,returning officer information,bank account for candidates,cash transportation election,Bihar elections 2025,election expense monitoring, Bihar Mahasamar





सूत्रों की माने तो बसपा का फोकस सिर्फ टिकट बंटवारे पर ही नहीं, बल्कि बूथ स्तर तक संगठन खड़ा करने पर भी है। दलित और अति पिछड़े समुदायों में छोटे-छोटे उपजातीय समीकरणों को साधने के लिए पार्टी गांव-गांव तक पैठ बनाने में जुटी है।

मायावती के करीबी नेताओं का मानना है कि अगर दलित, पिछड़ा, अति पिछड़ा और अल्पसंख्यकों का एक हिस्सा ही बसपा के साथ खड़ा हो गया, तो बिहार की राजनीति में नया समीकरण उभर सकता है। हालांकि बसपा की सोच और हकीकत में चुनौतियां भी कम नहीं। बड़ी चुनौती यह है कि दलित, पिछड़ा, अति पिछड़ा और अल्पसंख्यक समुदायों का वोट बंटा हुआ है।



राजद का आधार पिछड़ा और अल्पसंख्यक समुदाय रहा है, वहीं जदयू ने अति पिछड़ों पर पकड़ बनाई है। कांग्रेस भी इन्हीं समुदायों पर अपनी राजनीति केंद्रित कर रही है। दलितों में रामविलास पासवान की विरासत का असर अब भी लोक जनशक्ति पार्टी में देखा जाता है। ऐसे में बसपा के लिए इन बिखरे वोटों को एकजुट करना आसान नहीं होगा।
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