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कर्नाटक के डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार। फाइल फोटो
डिजिटल डेस्क, बेंगलुरु। देश में जातीय जनगणना की मांग काफी समय से उठ रही थी। केंद्र सरकार ने भी जातीय जनगणना करवाने की घोषणा की थी। वहीं, बिहार के बाद कर्नाटक सरकार ने राज्य स्तर पर सामाजिक और आर्थिक सर्वे शुरू कर दिया है, जिसे जातीय जनगणना का नाम दिया जा रहा है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
कर्नाटक के डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार का कहना है कि सर्वे में कोई भी निजी सवाल नहीं पूछे जा रहे हैं। उन्होंने ज्यादा से ज्यादा लोगों से सर्वे में शामिल होने का अनुरोध किया है।
डिप्टी सीएम ने क्या कहा?
कर्नाटक राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग को सामाजिक और आर्थिक सर्वे करवाने के लिए कहा गया है। यह सर्वे 22 सितंबर से शुरू हो गया है, जो 7 अक्तूबर तक चलेगा। वहीं, डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार का इसपर कहना है, “कोई कुछ भी कहे, यह सर्वे होकर रहेगा। अदालत ने कहा है कि यह सर्वे स्वैच्छिक होगा। लोग जिन सवालों का जवाब देना चाहेंगे, दे सकेंगे और उन्हें जिसका जवाब नहीं देना होगा, उसके लिए किसी को बाध्य नहीं किया जाएगा।“
डीके शिवकुमार ने कहा-
मैंने अधिकारियों को पहले से कह दिया है कि बेंगलुरु में लोगों से यह न पूछें कि उनके पास कितनी मुर्गियां, भेड़ें और बकरियां हैं? उनके पास कितना सोना है? यह उनके निजी मामले हैं।
डीके शिवकुमार के अनुसार, “कर्नाटक राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग एक स्वतंत्र कमीशन है। वो क्या सवाल पूछेंगे, मुझे नहीं पता। मैं ज्यादा से ज्यादा लोगों से अपील करता हूं कि इस सर्वे में हिस्सा जरूर लें।“
कर्नाटक हाईकोर्ट ने सुनाया था फैसला
कर्नाटक हाईकोर्ट ने पिछले महीने सर्वे रोकने से साफ इनकार कर दिया था। कोर्ट ने कर्नाटक राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग को आदेश दिया था कि जो लोग इस सर्वे में हिस्सा लेना चाहते हैं, वो ले सकते हैं। इस सर्वे के लिए 60 सवाल तैयार किए गए हैं। पूरे सर्वे में 420 करोड़ रुपये का खर्च आने का अनुमान है। इससे पहले कर्नाटक में 2015 में सामाजिक आर्थिक सर्वेक्षण हुआ था, जिसमें राज्य सरकार ने 165.51 करोड़ रुपये खर्च किए थे।
(समाचार एजेंसी पीटीआई के इनपुट के साथ)
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