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राज्य ब्यूरो, जागरण, लखनऊ: प्रदेश में नकली दवा कारोबारियों पर कार्रवाई के लिए खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन (एफएसडीए) में शासकीय अधिवक्ता की तैनाती नहीं की गई है। इसके चलते जिलों में नकली दवा का कारोबार या निर्माण करने वाले लोगों पर कड़ी कार्रवाई के लिए कोर्ट में प्रभावी पैरवी नहीं हो पा रही है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
तत्कालीन मुख्य सचिव दुर्गा शंकर मिश्रा ने पूर्व में हर जिले में एक शासकीय अधिवक्ता नामित करने के आदेश जारी किए थे। इसके बाद कार्रवाई शुरू हुई, लेकिन औषधि निरीक्षकों और खाद्य सुरक्षा अधिकारियों को मुकदमों की पैरवी में पूरी राहत नहीं मिली है।
शासन ने नकली व अधोमानक दवाईयों, मिलावटी खाद्य पदार्थों के मुकदमों की प्रभावी पैरवी के लिए जिलों में शासकीय अधिवक्ता (फौजदारी) और अभियोजन अधिकारी नामित करने के आदेश जारी थे। कारण था कि दुकानों के लाइसेंस बनाने से लेकर दवाओं की जांच के नमूने लेने और गड़बड़ी के मामलों में आरोप पत्र बनाने का कार्य भी औषधि निरीक्षकों के जिम्मे है।
ऐसे में शासकीय अधिवक्ता और अभियोजन अधिकारियों से वाद पत्र तैयार करने और कोर्ट में पैरवी के लिए भी इनकी मदद लेनी थी। आदेश था कि मजिस्ट्रेट न्यायालय में अभियोजन अधिकारी और सत्र न्यायालय में शासकीय अभिवक्ता (फौजदारी) से मुकदमों की प्रभावी पैरवी में मदद ली जाए, लेकिन अभी भी मुकदमों की पैरवी के लिए समस्याएं बनी हुई हैं।
स्थिति यह है कि एफएसडीए ने बीते छह माह में 6100 से अधिक दवा के नमूनों की जांच की है। इनमें से 19 नकली और डेढ़ सौ से अधिक अधोमानक पाए गए हैं। इन पर मुकदमा किया गया है, लेकिन सही से पैरवी न होने के कारण सजा दिलाने में देरी हो रही है।
एफएसडीए के संयुक्त आयुक्त हरिशंकर का कहना है कि मुख्यालय में एक विधि अधिकारी की तैनाती की गई है। उनसे मुकदमों में मदद ली जाती है। जिलों से भी अधिकारी मुख्यालय से मुकदमों की पैरवी के लिए मदद लेते रहते हैं। जरूरत पर जिलाधिकारी के माध्यम से अभियोजन अधिकारी की सलाह ली जाती है। |
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