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Sharad Purnima 2025: किस दिन मनाई जाएगी शरद पूर्णिमा? यहां पढ़ें महत्व

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发表于 2025-10-28 18:07:54 | 显示全部楼层 |阅读模式
  Sharad Purnima 2025: शरद पूर्णिमा का धार्मिक महत्व





आचार्य मिथिलेशनन्दिनीशरण (सिद्धपीठ श्रीहनुमन्निवास, अयोध्या)। आश्विन मास की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा, कोजागरी, नवान्न पूर्णिमा अथवा कौमुदी पूर्णिमा आदि अनेक नामों से जाना जाता है। यह पर्व इतिहास, पुराण, धर्म, अध्यात्म सहित अनेक सांस्कृतिक संदर्भों से युक्त है।

लिंगपुराण के अनुसार, इस अवसर पर रात्रि-जागरण एवं भगवती लक्ष्मी तथा ऐरावत हाथी सहित देवराज इंद्र की पूजा करनी चाहिए। इसे भगवती लक्ष्मी के प्राकट्य का पर्व भी माना जाता है। इस रात्रि में माता लक्ष्मी ‘कौन जागता है’ ऐसा प्रश्न करती हुई विचरण करती हैं इसलिए यह पर्व ‘कोजागरी’ अथवा ‘कोजागरा’ भी कहलाता है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें



शरद पूर्णिमा के अनेक संदर्भों में सर्वाधिक प्रशस्त है महारास का संदर्भ। भगवान् श्रीकृष्ण ने गोपकन्याओं को वचन दिया था कि ‘मयेमा रंस्यथ क्षपाः’ हे गोपियों तुम्हें मेरे साथ रमण का अवसर प्राप्त होगा। अपने वचन के अनुसार भगवान ने इसी शरद पूर्णिमा की रात्रि में भक्तिमती गोपियों को अपने अप्राकृत, अलौकिक विहार का आनंद प्रदान किया। “भगवानपि ता रात्रीः शरदोत्फुल्लमल्लिकाः।

वीक्ष्य रन्तुं मनश्चक्रे योगमायामुपाश्रितः॥” पूर्णकाम भगवान ने अपनी योगमाया का आश्रय लेकर प्रेममयी गोपियों को महारास के माध्यम से जो अमृत प्रदान किया, वह रास पंचाध्यायी के रूप में श्रीमद्भागवत महापुराण का प्राणतत्त्व होकर प्रतिष्ठित है। परमहंस शुकदेव जी रास का वर्णन करते हुए कहते हैं-  



“एवं शशांकांशुविराजिता निशाः स सत्यकामोऽनुरताबलागणः। सिषेव आत्मन्यवरुद्धसौरतः…।”

धवल चांदनी से युक्त शरद की सभी विशेषताओं से युक्त उस महान रात्रि में सत्यसंकल्प भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी प्रेयसी गोपियों के साथ रास की दिव्य एवं चिन्मयी लीला की। इस लीला में आत्माराम भगवान ने काम भाव को, उसकी चेष्टाओं तथा उसकी क्रिया को सर्वथा अपने अधीन कर रखा था।

यह रात्रि जिसमें सच्चिदानंद परमात्मा का रसरूप अमृत छलका है, इसे भारतीय परंपरा ने अमृत-पर्व कहकर अंगीकार किया है। मंदिरों में इस रात्रि में भगवान गर्भगृह से बाहर आकर स्वच्छ चांदनी में विराजते हैं। विविध उत्सव होते हैं और चंद्रकिरणों के अमृत से सिंचित खीर का भोग लगता है।



प्रायः देश भर में शरद पूर्णिमा को खीर पकाकर खुले आकाश के नीचे रखी जाती है, रात्रि-जागरण होता है और लोग उसी खीर का प्रसाद लेते हैं। संपूर्णप्राय देश में भिन्न-भिन्न रूपों में प्रचलित शरद पूर्णिमा पर्व हमारी अमृताभिलाषा को प्रकृति, पर्यावरण, परंपरा एवं आस्था में समन्वित रूप से पूर्ण करने का अद्भुत प्रसंग है।

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