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Jagannath Rath Yatra 2025: जगन्नाथ रथ यात्रा के लिए इंद्रद्युम्न सरोवर से आएगा जल, क्यों है यह महत्वपूर्ण

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भगवान विष्णु ने राजा इंद्रद्युम्न को दिया था वरदान।



धर्म डेस्क, नई दिल्ली। आषाढ़ शुक्ल द्वितीया तिथि यानी 27 जून 2025 को भगवान जगन्नाथ की प्रसिद्ध रथ यात्रा (Jagannath Rath Yatra 2025) ओडिशा के जगन्नाथ मंदिर से निकलने जा रही है। इस दिन भगवान जगन्नाथ नंदीघोष, उनके बड़े भाई बलभद्र तालध्वज और बहन सुभद्रा दर्पदलन नाम के रथ पर सवार होकर अपनी मौसी के घर गुंडिचा मंदिर जाएंगे। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

इससे पहले इंद्रद्युम्न सरोवर (indradyumna sarovar) से जल लाया जाएगा, जो गुंडिचा माता मंदिर से करीब आधा किलोमीटर दूर है। इस सरोवर से जल लाने की कहानी बहुत दिलचस्प है। इसे भगवान विष्णु के द्वारा राजा इंद्रद्युम्न को दिए गए एक वरदान से भी जोड़ा जाता है।

इसका वर्णन स्कंद पुराण में किया गया है। आइए जानते हैं इस सरोवर का महत्व और यह भी कि भगवान विष्णु ने क्यों दिया था राजा इंद्रद्युम्न को वरदान और क्या था वह।

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राजा इंद्रद्युम्न ने स्थापित कीं थी मूर्तियां

प्राचीन समय में इंद्रद्युम्न मलावा प्रदेश के राजा हुआ करते थे। वह भगवान विष्णु के परम भक्त थे। एक बार सपने में भगवान विष्णु ने राजा इंद्रद्युम्न को दर्शन दिए और भगवान जगन्नाथ की मूर्ति स्थापित करने का निर्देश दिया।

इसके बाद राजा इंद्रद्युम्न ने पुरी में भगवान जगन्नाथ की मूर्तियां स्थापित की। कहते हैं यह भगवान श्रीकृष्ण के देह त्यागने के बाद उनका अंतिम संस्कार किया गया। मगर, उनका हृदय नहीं जला था। तब पांडवों ने उसे नदी में प्रवाहित कर दिया था।

एक लठ्ठे के रूप में यह ब्रह्म पदार्थ राजा इंद्रद्युम्न को मिला था। उन्होंने इसे मूर्तियों में स्थापित किया था। वह ब्रह्म पदार्थ आज भी मूर्तियों के बदले जाने के समय पुरानी मूर्तियों से निकलकर नई मूर्तियां में स्थापित किया जाता है।
राजा इंद्रद्युम्न को दिया था ये वर

राजा इंद्रद्युम्न को भगवान विष्णु ने यह वरदान दिया था कि मैं तुम्हारे तीर्थ के किनारे हर साल आकर रहूंगा। विधिपूर्वक जो व्यक्ति वहां स्नान करेगा और 7 दिनों तक जगन्नाथ, बलराम और सुभद्रा का दर्शन करेगा, उसे मेरी कृपा मिलेगी।

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सरोवर क्यों है इतना पवित्र

इसकी भी एक कहानी है। कहते हैं कि राजा इंद्रद्युम्न ने अश्वमेध यज्ञ के दौरान ब्राह्मणों को हजार गायें दान की थीं। जहां इन गायों को बांधा गया था, वहां उनके खुरों से गहरा गड्ढा बन गया। यह बाद में तालाब में बदल गया। इस तालाब में गोमूत्र और जल के जमा होने से राजा ने अश्वमेध यज्ञ के दौरान उसका प्रयोग किया था।

इस तरह यह तालाब तीर्थ स्थान के जितना श्रेष्ठ और पवित्र माना जाता है। रथ यात्रा से पहले गुंडिचा मंदिर को पवित्र करने के लिए एक बार चैतन्य महाप्रभु ने इसी सरोवर से जल मंगाया था। इस जल का प्रयोग करने के बाद यह परंपरा आज तक चली आ रही है।

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