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Kantara Chapter 1 Review: धांसू कहानी और शानदार VFX ने किया कमाल, अतीत में कैसे ले जाएगी कांतारा, पढ़ें रिव्यू

https://www.jagranimages.com/images/newimg/02102025/02_10_2025-kantara_chapter_1_review__24067781.webpकांतारा चैप्टर 1 रिव्यू/ फोटो क्रेडिट- Jagran Graphics





प्रियंका सिंह, मुंबई। वह कांतारा का रक्षक है, फिल्म का यह सवांद तब महसूस भी होता है, जब ऋषभ शेट्टी पर्दे पर शानदार अभिनय करते हैं। साल 2022 में रिलीज हुई फिल्म कांतारा : अ लीजेंड की कहानी प्रीक्वल के जरिए अतीत में जाती है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
कैसे पीछे गई कांतारा चैप्टर 1 की कहानी?

पहली कांतारा के अंत में दिखाया जाता है कि बूता कोला (दैव शक्ति भीतर आने के बाद) नृत्य करने के बाद एक खास जगह पर आकर शिवा (ऋषभ शेट्टी) अदृश्य हो जाता है। उसी जगह उसके पिता भी अद्श्य हुए थे। ऐसा क्यों होता है, उस दंतकथा को सुनाने के लिए कहानी शिवा के पूर्वजों में जाती है। बांगड़ा साम्राज्य के राजा राजशेखर (जयराम) अपने बेटे गुलशेखर (गुलशन देवैया) को राजा बनाता है।



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उसकी बेटी कनकवति (रुक्मणि वसंत) बंदरगाह का काम संभालती है, जहां व्यापार होता है, वहां कांतारा के वन से कई मसाले भी बेचे जाते हैं। कांतारा को ईश्वर का मधुबन भी कहा जाता है, वहां पला-बढ़ा बर्मे (ऋषभ शेट्टी) को जब व्यापार का पता चलता है, तो वह भी बांगड़ा जाकर यह सीखता है, ताकि अपने आदिवासी लोगों के जीवन को बेहतर बना सके। बर्में के प्यार में कनकवति पड़ जाती है, जिसके पीछे एक कारण है।



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कांतारा चैप्टर 2 के साथ आगे बढ़ेगी कहानी

ऋषभ शेट्टी ने फिल्म के अंत में बताया है कि वह इस फिल्म की कहानी को चैप्टर 2 में आगे लेकर जाएंगे। कहानी किस दौर में सेट है, उसका जिक्र फिल्म में नहीं है, लेकिन ऋषभ के लेखन और रिसर्च में गहराई है। वह हर फ्रेम को किसी जौहरी की तरह गढ़ते हैं। कांतारा फिल्म की पृष्ठभूमि से वह वाकिफ थे, क्योंकि वह उन्हीं के गांव की संस्कृति पर आधारित थी।



इस बार उन्होंने अपने कंफर्ट जोन से बाहर निकलकर शानदार काम किया है। खासकर उन दृश्यों में जब बर्मे के भीतर गुलिगा देवता का प्रवेश होता है और वह गुलशेखर का खात्मा करता है। हालांकि फिल्म बहुत लंबी है। व्यापार करने वाले और कुछ एक्शन सीक्वेंस को बेवजह लंबा खींच दिया गया है।

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फिल्म का विजुअल इफेक्ट ऐसा है, जो वास्तविकता और ग्राफिक्स के बीच के अंतर को महसूस नहीं होने देता। खासकर बाघ और बंदरों वाले जंगल एक एक्शन दृश्य में। अरविंद एस कश्यप की सिनेमैटोग्राफी इस पेशे में करियर बनाने वालों के लिए किसी क्लासरूम से कम नहीं। बी अजनीश लोकनाथ का बैकग्राउंड स्कोर दमदार है, लेकिन कई जगहों पर वह इतना तेज है कि वॉइस ओवर सुनाई नहीं देता।



ऋषभ की पत्नी और कास्ट्यूम डिजाइनर प्रगति शेट्टी की कपड़ों को लेकर रिसर्च आसानी से उस दौर में ले जाती है। फिल्म की सिग्नेचर ट्यून पहली फिल्म से जुड़ाव बनाए रखती हैं। अच्छी बात यह है कि पहली कांतारा अगर नहीं भी देखी है, तो भी फिल्म को समझने में बहुत दिक्कत नहीं होगी।
ऋषभ शेट्टी ने किया इस बात को गलत साबित

कलाकार जब अभिनय के साथ फिल्म के दूसरे डिपार्टमेंट में भी व्यस्त हो, तो अभिनय के साथ समझौता होने का डर होता है। इस फिल्म ने ऋषभ शेट्टी ने इन बातों को गलत साबित किया है। निर्देशन और लेखन के साथ अभिनय पर उनकी पकड़ मजबूत है। एक दृश्य में जब केवल अपने भावों के जरिए बताते हैं कि वह लड़की को क्यों नहीं छूना चाहते हैं, स्क्रीन से नजरें हटने नहीं देता। रुक्मणि वसंत का रोल फिल्म में चौंकाएगा। उनके अभिनय में गहराई है।



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जयराम का अनुभव उनके पात्र में दिखता है। क्रूर और रंगीन राजा के रोल में गुशनल देवैया के पास करने के लिए बहुत कुछ था, लेकिन अच्छे अभिनेता होने के बावजूद वह इसमें चूक जाते हैं। उनके हिंदी डायलॉग्स भी दमदार नहीं हैं।

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